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Dr. Yogesh Vyas

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कुंडली मिलान-

विवाह संस्कार भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह मनुष्य को परमात्मा का एक वरदान है। पूर्व जन्म में किए गए पाप एवं पुण्य कर्मों के अनुसार ही जीवन साथी मिलता है और उन्हीं के अनुरूप वैवाहिक जीवन दुखमय या सुखमय होता है। कुंडली मिलान- हिंदू विवाह परंपरा के अनुसार सफल वैवाहिक जीवन के लिये बहुत आवश्यक माना जाता है। जीवन में सुखद विवाह एक बड़ा प्रश्न बन चुका है, इसीलिए अब व्यवस्थित कुण्डली मिलान आवस्यक होता जा रहा है। कुंडली मिलान- हिंदू विवाह परंपरा के अनुसार सफल वैवाहिक जीवन के लिये बहुत आवश्यक माना जाता है। मान्यता है कि यदि जातक और जातिका की जन्मकुंडली मैच हो रही है, कुंडली में गुण मिलान हो रहे हैं तो उनके वैवाहिक जीवन का सफर भी अच्छा रहेगा। शादी करने जा रहे जोड़ों के रिश्ते कितने अच्छे रहेंगे, इस बारे में भी सलाह दी जाती है। यहां गहराई के साथ कुण्डली मिलान की व्यवस्था उपलव्ध है।

जब नई-नई शादी होने वाली होती है या हो जाती है तो मन में न जाने कितने सपने होते हैं, मां बाप भी अपने बहू के अरमान लिए होते हैं, कि मेरे बच्चे का घर बसने वाला है। कोई गलती या घटना न घटे, इसीलिए गुण मिलान भी करवाते हैं ! विवाह के लिए गुण मिलान जितना जरूरी है उतना ज्यादा ही ग्रहों का मिलान भी जरूरी होता है !

कुंडली में विवाह का विचार मुखयतः सप्तम भाव से ही किया जाता है। इस भाव से विवाह के अलावा वैवाहिक या दाम्पत्य जीवन के सुख-दुख, जीवन साथी अर्थात पति एवं पत्नी, काम, विवाह से पूर्व एवं पश्चात यौन संबंध, साझेदारी आदि का विचार किया जाता है। यदि कुंडली मिलान (अष्टकूट) सही न हो, तो दाम्पत्य जीवन में वैचारिक मतभेद रहता है। यदि राशियों में षडाष्टक- भकूट दोष हो तो, दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जातका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो तो, खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है। यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। जैसे यदि ज्ञान, धर्म, रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान के कारक गुरु तथा सौंदर्य, भौतिकता और ऐंद्रिय सुख के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानसिकता, सोच और जीवन शैली बिल्कुल विपरीत होती है। पति-पत्नी के गुणों अर्थात स्वभाव में मिलान सही न होने पर आपसी तनाव की संभावना बनती है, अर्थात पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है, जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिए। मंगल दोष भी पति-पत्नी के मध्य तनाव का कारक होता है। स्वभाव से गर्म व क्रूर मंगल यदि प्रथम (अपना), द्वितीय (कुटुंब, पत्नी या पति की आयु), चतुर्थ (सुख व मन), सप्तम (पति या पत्नी, जननेंद्रिय और दाम्पत्य), अष्टम (पति या पत्नी का परिवार और आयु) या द्वादश (शय्या सुख, भोगविलास, खर्च का भाव) भाव में स्थित हो या उस पर दृष्टि प्रभाव से क्रूरता या गर्म प्रभाव डाले, तो पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव, क्लेश, तनाव आदि की स्थिति पैदा होती है। राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य) और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। मेलापक में योनिकूट की महत्ता आठ तत्वों का विवेचन मेलापक में करते हैं। ये तत्व हैं- वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी। 'योनिकूट' के मेल खाने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। इससे वर और कन्या के काम पक्ष की जानकारी होती है। हम इस वेबसाइट के माध्यम से आपकी समस्याओं का समाधान आसान तरीकों से करने के लिए उपलव्ध हैं।

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